नैनीताल, किशोर जोशी। महर्षि दयानंद सरस्वती ने 1875 में सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक लिखी थी, जिसमें आर्य समाज के सम्पूर्ण दर्शन की झलक मिलती है। 1882 में किताब में संशोधन किया और 20 भाषाओं में अनुवादित हुई। रामनगर के ढिकुली निवासी गजानंद छिमवाल महर्षि दयानंद की विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित थे। गजानंद में 20 मई 1874 को सत्यधर्म प्रकाशिनी सभा की स्थापना नैनीताल में की। यह आर्य समाज आंदोलन की नैनीताल में शुरुआत थी। शिल्पकार जाति के उत्थान के प्रारंभ इसी सभा के साथ शुरू हुआ।
इतिहासकार प्रो अजय रावत के अनुसार सत्यधर्म प्रकाशिनी सभा ने शिल्पकार समाज के बड़े नेता खुशीराम को बेहद प्रभावित किया। खुशीराम ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 7 अप्रैल 1875 को जब स्वामी दयानंद सरस्वती ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की तो गजानंद छिमवाल व उनके साथियों ने सत्यधर्म प्रकाशिनी सभा में आर्य समाज का अनुसरण किया। साथ ही सभा द्वारा तल्लीताल कचहरी रोड में गजानंद छिमवाल के निजी आवास पर आर्य समाज मंदिर की स्थापना की, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया का पहला आर्य समाज मंदिर था। आजादी के बाद आर्य समाज को मल्लीताल स्थानांतरित किया गया और वह वर्तमान समय में भी है
प्रो रावत के मुताबिक इस स्थानांतरण का श्रेय तत्कालीन पालिकाध्यक्ष जसोद सिंह बिष्ट व कुमाऊं कमिश्नर आरबी शिवदसानी को जाता है। उन्होंने यह भूमि आजादी के बाद ही आर्य समाज को आवंटित कर दी थी। महान स्वतंत्रता सेनानी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा भी आर्य समाज से बहुत प्रभावित थे। अलग राज्य आंदोलन में भी नैनीताल आर्य समाज के सचिव स्वं माधवानंद मैनाली ने अहम भूमिका निभाई। नैनीताल आर्य समाज मंदिर की ओर से वेद सप्ताह के तहत हर साल वेदों का प्रचार प्रसार किया जाता है।