नैनीताल : नैनीताल की 1841 में हुई खोज का श्रेय अब तक पी बैरन को ही दिया जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. अजय रावत अब इसमें नई जानकारी सामने लाए हैं। राज्य अभिलेखागार लखनऊ से हासिल पुस्तक ‘वांडरिंग इन द हिमाला’ के हवाले से प्रो. रावत कहते हैं कि ब्रिटिश राज में पी बैरन नहीं बल्कि तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल सबसे पहले 1823 में नैनीताल आए थे। जबकि पी बैरन पहली बार 1839 तथा दूसरी बार 1841 में नैनीताल आए थे। ‘वांडरिंग इन द हिमाला’ पुस्तक के माध्यम से आगरा अखबार में स्वयं उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया। 18 नवंबर 1842 को जब वह तीसरी बार नैनीताल आए तब यहां नगरीकरण शुरू हो गया था। इस लिहाज से पी बैरन ने 1841 में नहीं बल्कि ट्रेल ने 1823 में ही नैनीताल की खोज कर ली थी। नैनीताल की खोज से जुड़ा यह तथ्य जर्नल ऑफ लेंडस्केप हिस्ट्री बर्किंघम, इग्लैंड में प्रकाशित हुआ है।
नैनीताल के जन्मोत्सव की पूर्व बेला पर प्रो. रावत ने कहा कि किताब में पी बैरन ने खुद लिखा है कि मुझसे पहले जीडब्ल्यू ट्रेल नैनीताल आ चुके हैं, मगर उन्होंने किसी को नहीं बताया। अंग्रेज कमिश्नर ट्रेल का स्थानीय जनता सम्मान करती थी। उस दौर के अंग्रेज यात्री बिशप हीवर ने भी कुमाऊं की यात्रा की थी, उन्होंने भी अपनी किताब में लिखा है कि ट्रेल बदरीनाथ यात्रा करने वाले पहले अंग्रेज यात्री थे। उन्होंने ही अंगे्रजी सरकार के खिलाफ जाकर व अंग्रेजों से ही चंदा लेकर बदरीनाथ मार्ग का सुधार करने के साथ नालों पर पुल बनाए। ट्रेल 1816 से 1836 तक कुमाऊं कमिश्नर रहे। उनकी पत्नी भी पहाड़ की थी, वह यहीं रहना चाहते थे, मगर बच्चों की वजह से उन्हें जाना पड़ा।
तब पवित्र स्वरूप में थी सरोवर
उस दौर में पवित्र स्थान होने की वजह से हल्द्वानी से आने वाले लोग हनुमानगढ़ी में जबकि कालाढूंगी के रास्ते आने वाले लोग बारापत्थर में जूते चप्पल उतारने के बाद ही नैनीताल आते थे। पवित्र स्थल होने की जानकारी होने पर पी बैरन ने भी सरोवर के बारे में किसी को नहीं बताया। उनका मानना था कि अंग्रेज इस पवित्र स्थल को खराब कर देंगे।
ट्रेल ने किया पहला बंदोबस्त
इतिहासकार प्रो. रावत के अनुसार 1815 में अंग्रेजों ने कुमाऊं में अधिकार जमाया और तब पहले कमिश्नर गार्डनर बनाए गए। उनका कार्यकाल छह माह रहा, मगर गोरखाओं के साथ राजनीतिक संबंधों की वजह से उनका अधिकांश समय काठमांडू में ही व्यतीत हुआ। छह माह बाद गार्डनर के सीनियर असिस्टेंट ट्रेल को कुमाऊं कमिश्नर बनाया गया। ट्रेल ने ही 1823 में भू राजस्व के लिए गांवों के राजस्व मानचित्र बनाए। तब नैनीताल को छकाता परगना कहा गया था। संवत 1880 में बंदोबस्त होने की वजह से यह 80 साला बंदोबस्त के रूप में चर्चित है। प्रो. रावत के अनुसार नैनीताल को बसाने व संवारने में ट्रेल के साथ ही ठेकेदार मोती राम साह व कमिश्नर लूसिंगटन का भी महत्वपूर्ण योगदान है। साह ने ही नैनीताल की पुरानी कोठियां बनाई जबकि लूसिंगटन ने 1841 मेें नगरीकरण शुरू किया।
नैनीताल जन्मोत्सव कार्यक्रम आज
नैनीताल के 179वें जन्मोत्सव पर बुधवार को श्रीराम सेवक सभागार में सांकेतिक रूप से सर्वधर्म पूजा कार्यक्रम अपराह्नï दो बजे से शुरू होगा। मुख्य अतिथि अपर पीसीसीएफ डा. कपिल जोशी, विशिष्ट अतिथि विधायक संजीव आर्य होंगे। आयोजक दीपक बिष्ट ने बताया कि वरिष्ठ नागरिकों की विचार गोष्ठी होगी।