हाईकोर्ट की खंडपीठ ने शुक्रवार को चिदानंद मुनि द्वारा ऋषिकेश के निकट रिजर्व फॉरेस्ट की वीरपुर खुर्द वीरभद्र में स्थित 35 बीघा जमीन पर अतिक्रमण करने और उस पर एक विशाल हॉल व 52 कमरों की बिल्डिंग का निर्माण किए जाने के खिलाफ दायर जनहित पर सुनवाई की। इसमें राज्य सरकार की तरफ से पक्ष रखा गया कि जिस भूमि पर चिदानंद मुनि द्वारा बिल्डिंग बनाई गी थी, उसको तोड़ दिया गया है। इसको आधार मानकर कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है। मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ एवं न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ में हुई।
हरिद्वार निवासी अर्चना शुक्ला की ओर से जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें कहा है कि ऋषिकेश के निकट वीरपुर खुर्द वीरभद्र में चिदानंद मुनि ने रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा भूमि पर कब्जा कर वहां पर 52 कमरे, एक बड़ा हॉल और गोशाला का निर्माण कर लिया है। मुनि के रसूखदारों से संबंध होने के कारण वन विभाग व राजस्व विभाग द्वारा इसकी अनदेखी की जा रही है। कई बार प्रशासन व वन विभाग को भी अवगत कराया गया, फिर भी किसी तरह की गतिविधियों पर रोक नहीं लगी। इस कारण उनको जनहित याचिका दायर करनी पड़ी। याचिकाकर्ता ने उक्त भूमि से अतिक्रमण हटाकर यह भूमि सरकार को सौंपे जाने की मांग की है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के यह पक्ष रखने पर कि अतिक्रमण को ध्वस्त कर दिया गया है, इस पर हाईकोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।
मुनि के खिलाफ 26 फॉरेस्ट एक्ट में दर्ज हो चुका है मुकदमा
नैनीताल। सरकार की ओर से चिदानंद मुनि द्वारा .99 हेक्टेयर भूमि पर किए गए निर्माण को ढहा दिए जाने के बयान के बाद खंडपीठ ने विपक्षी अधिवक्ता से भी इस बाबत सवाल किया। इस पर अधिवक्ता ने भी निर्माण ढहाने की पुष्टि की। खंडपीठ ने सरकार से कहा कि क्या इसमें आरोपी चिदानंद मुनि के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होगी। इस पर सरकार ने कहा कि मुनि के खिलाफ 26 फॉरेस्ट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। इसकी चार्जशीट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट देहरादून की न्यायालय में दाखिल की जा चुकी है। खंडपीठ ने सीजेएम को भी कहा है कि इसमें 26 फॉरेस्ट एक्ट में जुर्माना न देखते हुए इसे पृथक तरीके से देखा जाए। 30 वर्ष तक उक्त भूमि मुनि के कब्जे में रही। ऐसे में उसके एवज में लिया जाने वाला मुआवजा भी इसी अनुपात में लिया जाना चाहिए।